Monday, April 13, 2015

दोराहे पर खड़ा आरटीआई कानून

हाल ही में सूचना के अधिकार कानून से जुड़ी दो खबरों ने अपना ध्यान खिंचा। पहली खबर राजस्थान के ब्यावर से आई। ब्यावर में एमकेएसएस सूचना के अधिकार कानून को लेकर छेड़े गए आंदोलन के 20 साल पूरे होने के अवसर पर कई तरह के कार्यक्रम कर रहा है। आज से 20 साल पहले 5 अप्रैल 1996 को राजस्थान के ब्यावर में सूचना के अधिकार कानून की मांग को लेकर एक धरना शुरू हुआ। मजदूर किसान संघर्ष समीति के नेतृत्व में शुरू हुआ यह धरना चालीस दिनों तक चला था। दरअसल धरना शुरू होने के ठीक एक साल पहले 5 अप्रैल 1995 को राजस्थान के तत्कालिन मुख्यमंत्री भैरों सिंह शैखावत ने राज्य विधानसभा में यह घोषणा की थी कि राज्य में सूचना का अधिकार कानून लाया जाएगा। उस घोषणा के एक साल बीत जाने के बाद भी जब घोषणा पर कोई कारवाई नहीं हुई तो एमकेएसएस के नेतृत्व में उस घोषणा पर अमल कराने की मांग के साथ धरना शुरू हुआ। जब सरकार ने इस संबंध में निर्णय लेने के लिए एक समीति का गठन किया तब जाकर यह धरना खत्म हुआ। धरना के खत्म होने के बाद लगभग 10 साल तक चले आंदोलन के बाद ही 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून केंद्र में लागू हो पाया था। तब से लेकर आज तक इस कानून ने लोकतंत्र की निंव में खाद पानी डालकर ना सिर्फ इसे सिंचा है बल्कि इसकी फसल को आखिरी पायदान पर खड़े लोगों तक पहुंचाया भी है। अब इस कानून के लागू हुए भी 10 साल बीत गए। लेकिन आज आई एक दूसरी खबर ने भी अपनी ओर ध्यान खिंचा। दिल्ली हाइकोर्ट ने सीआईसी में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति के संदर्भ में हुई प्रगति पर 11 मई तक अदालत को सूचित करने का निर्देश दिया है। दरअसल मुख्य सूचना आयुक्त का पोस्ट पिछले एक साल से खाली पड़ा है। जबकि आयोग में हालत यह है कि यहां लंबित पड़े मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।इस वजह से सूचना मांगने वालों का उत्साह लगातार कम होते जा रहा है।लंबित मामलों को सुलझाने का एक तरीका तो यह हो ही सकता है कि आयोग अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करे। आयोग में दस आयुक्त नियुक्त हो सकते हैं लेकिन ध्यान देने लायक बात यह है कि यहां मुख्य सूचना आयुक्त का पद ही खाली है। भला और किसी आयुक्त से क्या उम्मीद करें। अब हालत ये है कि कोर्ट को दिशा निर्देश जारी करना पड़ रहा है। ये हालात केंद्रीय सूचना आयोग के हैं। राज्यों के हालात की तो बात ही ना करें। सिर्फ उत्तरप्रदेश में हाल ये है कि यदि नए अपील आने बंद हों जाएं तो पुराने अपीलों का निपटारा करने में एक साल लग जाएगा। ऐसे बहुत कम कानून या अधिकार होते हैं जो लोगों की आकांक्षाओं के मूर्त रूप में लंबे संघर्षों के बाद मिलते हैं । सूचना का अधिकार कानून इनमें से एक है। अब सवाल ये उठता है कि जिस कानून को पाने के लिए लोगों ने इतना लंबा संघर्ष किया, जिस कानून ने ओडीसा के घने जंगलों से लेकर गंगा-यमुना के मैदानों तक और हिमाचल के पहाड़ों से लेकर अंडमान तक आम लोगों को आवाज़ दिया, उस कानून को यूंहि छोड़ दिया जाएगा।